شذى توما مرقوس
الحوار المتمدن-العدد: 2310 - 2008 / 6 / 12 - 09:46
المحور:
الادب والفن
2007
زهرةً إِثرَ زهرة……
عن ذاك الغُصن …. غُصنَ عمري….
ذبِلوا….
تساقطوا ….
تلاشوا …..
كُلّهُم …..
تركوا غُصني فارِغاً …..
كما لم يكنْ أبداً …. وأبداً…
الحسراتُ تقِفُ فوق عتبةِ بابي …..
تحاصِرُ أيامي ….
كيف فقدتُهم ….. ؟!!!
كيفَ تركتُهم يرحلوا …. ؟!!!
كيف ….. ؟ !!!!
ما أنا ….. بإلهٍ قادِرٍ …..
رحلوا ….. لآهاتي ما أنصتوا …….
ولم يُنصِتوا ....... !!
زهرةً …. زهرة …. غادروني …..
تساقطوا عني …..
وفوقَ رصيف العُمرِ ….. مرّوا وعبروا …
ثُم الى العتبة النائيةِ …..
هُناكَ ….حيثُ القبر ….قفزوا …..
آهٍ ….. لقد قفزُوا ….
وعيدُ ميلادي ….. كانَ حافِلاً ….
الا …. مِنهُم ….. !!
ذبِلوا …….
سقطوا ……
وتلاشوا ……
زهرةً …. زهرة …..
غُصنَ عُمري غادروا ……
أنا أيضاً سأغادِرُ أغصان الأخرين …..
حين يتحققُ الرّبُ غيابي ….!!!!
دونَ وداع ….
تماماً …. وكما كُلّهُم فعلوا …..!!
ما منّا …. سيبقى !
ما منّا …. سيُخلّد !
أشياؤُنا …. ستبقى …ستفتقِدُنا
أشياؤُنا أخلدُ منّا …. وأخلد
"الجماد "
تسميةغرورِنا الأنسانيُ الأبله للأشياء
هذا الجماد …. أفضلُ منّا وأخلد ….
الحيوانات …..
وكما يُسميّها غُرورنا الأبله ….
وكبرياؤنا الأجوف ….
أفضلُ منّا …..
أنّها أفضل ….
ألفُ مرة أفضلُ منّا …. وأعقل ….
رحلوا ….
واحِداً تُلو أخر ….
الأُمُ …….
الأبُ ……
الأختُ .....
الأخُ ......
والأصدِقاءُ ……
كانُوا هُنا ......
الآن ..... ما عادوا .....
ولا ...... مكثوا .....
لم يبقْ أحد ….
ما بقيَ أحد ….. !!
وما بقيَ مِنهُم …. أشياء …
ثيابٌ …. وحقائب ….
وعصا العجوز ……
وحفنةُ أوراق ….
نسوها هُنا وغادروا ….
فاتوا دفاتر مُذكراتِهِم ……
فأورثُونا أياها ......
بلا مُذكراتٍ ......
الى العتبةِ النائية …..
هُناكَ …. حيثُ القبر ….. قفزوا ..
ذبِلوا …..
تساقطوا عن غُصني ……
رحلوا ….
تركوني …..
ما تركتهم …….
في مآقي العينينِ دمعةً ….
سكنوا …..
في ثنايا الروحِ ......
آثارهُم ...... ختموا ....
وفي جوفِ القلبِ كُل ذِكراهُم …..
حفروا ….
و ….. حفروا
2007
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